बाहर फंसे मजदूरों के लिए ये संकट का समय है ,मानवेंद्र आजाद

 बाहर फंसे मजदूरों के लिए ये संकट का समय है ,मानवेंद्र आजाद

मिशन हंड्रेड के संस्थापक मानवेन्द्र आजाद जो विगत 5 वर्षों से भी ज्यादा समय से गरीब मजदूर असहाय लोगों के प्रत्येक दुख सुख में उनके साथ रात दिन खड़े रहने वालों में से एक हैं । मजदूर किसान व असहाय लोगों के लिए तन मन और धन से अपने आप को समर्पित करने वाले मिशन हंड्रेड के संस्थापक मानवेंद्र आजाद जी का हृदय भी करुणा से भरा हुआ है । ऐसे में जब लॉक डाउन की घोषणा हुई और सभी फैक्ट्रियों और कामकाज रोक दिए गए, तो एक समय के लिए मानवेन्द्र आजाद स्तब्ध से हो गए और उन्हें मजदूरों की चिंता ने अंदर तक झकझोर कर रख दिया । उन्होंने तुरंत ही महाराष्ट्र गुजरात दिल्ली व अन्य प्रदेशों में मजदूरों से तुरंत ही संपर्क करके यह भरोसा दिलाया कि वह चिंता ना करें । मानवेंद्र आजाद कानपुर में जरूर है लेकिन उनके संगठन के लोग और उनके साथी सभी जगह मौजूद हैं और किसी भी प्रकार की सहायता के लिए वह कभी भी संपर्क कर सकते हैं ।मजदूरों और फंसे लोगों की मानवेन्द्र जी से एक ही विनती थी कि उन्हें उनके घरों तक कैसे भी पहुंचा दिया जाए ।मानवेंद्र आजाद ने तुरंत ही मजदूरों के वापस लाने के लिए सबसे पहले जमीनी स्तर पर कार्य करते हुए 100 बसों का इंतजाम किया। फिर सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार से अनुरोध किया कि सुरक्षित उपाय को करके मजदूरों को उन्हें वापस लाने के लिए प्रयास करे। इस कार्य में मानवेन्द्र आज़ाद जी ने 100 बसे अपने खर्च पर देने का वादा भी किया ।मानवेन्द्र जी ने सोशल मीडिया के संदेशों के द्वारा जो गुजारिश सरकार से की उसको राज्य के कई प्रतिष्ठित नेताओं व मजदूर संगठनों ने भी उनके इस कार्य की सराहना की , साथ ही सहयोग भी देने की बात की । मानवेन्द्र आज़ाद द्वारा मजदूरों को वापस लाने का जो अनुरोध किया गया सरकार से वह रंग लाया और सरकार ने एक ठोस कार्ययोजना बनाकर उनकी वापसी बस व ट्रेन द्वारा सुनिश्चित की ।आपको बताते चलें मानवेंद्र आजाद जो मिशन हंड्रेड के संस्थापक हैं वह पिछले 30 दिनों से भी ज्यादा समय से मजदूरों को वापस लाने के लिए दिन-रात प्रयासरत हैं। पूरे विश्व में जिस प्रकार से वैश्विक महामारी कोरोना ने धीरे-धीरे पैर पसारते हुए लोगों को अपनी जद में लेना शुरू कर दिया था। मार्च आते-आते भारत भी इससे अछूता नहीं रहा और इस कोरोना महामारी को रोकने का एक ही उपाय था लाक डाउन ।जिसको देश के माननीय प्रधानमंत्री ने गंभीरता से लेते हुए इसे लागू किया ,साथ में अपने संबोधन में आप्रवासी मजदूरों और दैनिक वेतन भोगियों के लिए भी चिंता दर्शाई थी ।लॉक डाउन की घोषणा होते ही फैक्ट्रियों कल कारखानों छोटे बड़े उद्योगों ने जहां के तहां रुक गए ।दैनिक मजदूर के लिए रोजी-रोटी का संकट के साथ ही रहने का संकट भी सामने आ खड़ा हुआ। ऐसे कुछ दिन तो जैसे तैसे काट लिय । लेकिन कितना समय आगे और ऐसे ही काटना था यह किसी को नहीं पता था। रेल बस व अन्य परिवहन के साधनों के भी ठप हो जाने की वजह से मजदूर घर जाने के लिए बेचैन हो उठे। ऐसे बहुत से मजदूर अपने घरों की ओर पैदल चल दिए यह दूरी 1 से 2 किलोमीटर ना होकर 700 से 1000 किलोमीटर से भी ज्यादा की थी लेकिन अपने घरों तक सुरक्षित पहुंचना उनका एक लक्ष्य था। जब मजदूरों के लिए कम्युनटी किचन की व्यवस्था की गई तो यहां भी इन मजदूरों को काफी संघर्ष करना पड़ता था। सुबह से ही तेज धूप में खाने के लिए लाइन लगाना और दोपहर तक आखिरी व्यक्ति तक खाना पहुंच पाएगा यह भी निश्चित नहीं होता था । ऐसे दिनों में व्यथित होकर ही मजदूर अपने घर वापसी के लिए प्रयासरत थे और मानवेंद्र आजाद से लगातार संपर्क में अपनी व्यथा जरूर बताते रहे । सरकार ने मजदूरों को लाने के लिए योजना तैयार की लेकिन कुछ कमियां भी कही न कही राह गई । मजदूर जो रोज खाने कमाने वाले थे 1 महीने से भी ज्यादा समय से बेरोजगार बैठे हैं ऐसे में वापसी के लिए उनके पास किराया भी नहीं है ऐसे में ट्रैन अन्य बसों से वापसी के लिए सरकार ने व्यवस्था की ,लेकिन किराए के साथ ।ऐसे में वह मजदूर जिनके पास पैसे है ही नहीं वह निराश हैं ऐसे मजदूर भी बड़ी संख्या हैं जिनके पास आधार कार्ड व अन्य जरूरी पत्र मौजूदा समय में उनके पास नहीं है ।ऐसे में मजदूर कैसे घर वापसी करेंगे यह एक बड़ा सवाल रह जाता है।

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